फरीदाबाद। फरीदाबाद संसदीय क्षेत्र के पलवल जिले में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो कद्दावर मंत्रियों—केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर और राज्य के खेल मंत्री गौरव गौतम—के बीच चल रहा सियासी टकराव अब खुलेआम दिखाई देने लगा है। इस शक्ति प्रदर्शन का सीधा असर जिले की मार्केट कमेटियों के चेयरमैन की नियुक्तियों पर पड़ा है।
इन दोनों मंत्रियों के बीच चल रहे पावर गेम का असर भविष्य की राजनीति पर होना तय माना जा रहा है।
शुरुआत में, नायब सरकार ने पलवल जिले की तीन महत्वपूर्ण मार्केट कमेटियों—होडल, हथीन और हसनपुर—के चेयरमैन पद पर खेल मंत्री गौरव गौतम के समर्थकों को नियुक्त किया था।
बाकायदा सरकारी आदेश जारी किए गए और ये तीनों चेयरमैन अपना पदभार भी संभाल चुके थे।
लेकिन, इसके तुरंत बाद मोदी सरकार में राज्य मंत्री और फरीदाबाद से सांसद कृष्णपाल गुर्जर की राजनीतिक दखलंदाजी सामने आई।
बताया जाता है कि गुर्जर ने इन नियुक्तियों को लेकर आपत्ति जताई, जिसके बाद नायब सरकार को जारी की गई चेयरमैनों की सूची को बदलना पड़ा।
हथीन में स्पष्ट दिखा गुर्जर का प्रभाव
यह बदलाव हथीन मार्केट कमेटी में सबसे स्पष्ट रूप से देखने को मिला। 28 नवंबर को सरकार ने देवी डागर (जो गांव मंडकोला के पूर्व सरपंच हैं) को हथीन मार्केट कमेटी का चेयरमैन घोषित किया था।
राजनीतिक सूत्रों के अनुसार, देवी डागर भाजपा के उस गुट से संबंध रखते हैं जिसका नेतृत्व मनोज रावत करते हैं, और मनोज रावत वर्तमान में खेल मंत्री गौरव गौतम के करीबी माने जाते हैं।
गौरतलब है कि मनोज रावत कभी कृष्णपाल गुर्जर की टीम का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन अब वे पाला बदल चुके हैं।
इसके बाद, कृष्णपाल गुर्जर ने हस्तक्षेप किया और देवी डागर को हटाकर अपने गुट के व्यक्ति को कुर्सी दिलवाई।
28 नवंबर को ही एक नया नोटिफिकेशन जारी किया गया, जिसमें हरजीत डागर को हथीन मार्केट कमेटी का चेयरमैन घोषित किया गया।
हरजीत डागर एक व्यवसायी हैं और सीधे तौर पर केंद्रीय राज्य मंत्री कृष्णपाल गुर्जर के गुट से आते हैं।
यह शक्ति प्रदर्शन इतना साफ है कि हरजीत डागर 22 दिसंबर को चेयरमैन का पदभार ग्रहण करेंगे।
इसी तरह, गुर्जर ने पहले होडल और अब हसनपुर मार्केट कमेटी के चेयरमैन को हटाकर अपने समर्थकों को इन महत्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया है।
‘गुरु-चेले’ के रिश्ते में आई दरार
हरियाणा की राजनीति में एक वक्त था जब कृष्णपाल गुर्जर और गौरव गौतम के बीच ‘गुरु-चेले’ का रिश्ता माना जाता था। इन दोनों के सियासी रिश्तों की शुरुआत साल 2014 में हुई, जब गुर्जर फरीदाबाद से अपना पहला लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे।
चुनाव जीतने के बाद, गुर्जर ने गौरव को अपना सांसद प्रतिनिधि नियुक्त किया। 2024 में जब गौरव गौतम ने पलवल सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, तब भी यह चर्चा थी कि उन्हें टिकट दिलाने में गुर्जर की ही सिफारिश रही होगी।
लेकिन राजनीति की बदलती फिजा में यह रिश्ता ज्यादा दिन नहीं टिका। 36 वर्षीय गौरव गौतम को भाजपा की तीसरी बार की सरकार में सबसे युवा खेल राज्य मंत्री बनाया गया।
मंत्री बनने के बाद, सूत्रों के हवाले से बताया जाता है कि गौरव गौतम ने धीरे-धीरे गुर्जर से किनारा करना शुरू कर दिया।
नई सियासी तिकड़ी और पुरानी अदावत
गौरव गौतम अब कैबिनेट में ही गुर्जर के विरोधी माने जाने वाले मंत्रियों विपुल गोयल और राजेश नागर के करीब आ गए हैं।
विपुल गोयल के करीबी मानते हैं कि 2019 में उनकी टिकट कटवाने में गुर्जर का ही हाथ था, वहीं राजेश नागर तो चुनाव जीतने के बाद गुर्जर से मिलने तक नहीं गए थे।
अब फरीदाबाद की राजनीति में नागर, गोयल और गौतम की एक नई सियासी तिकड़ी बन गई है, जो क्षेत्र में कृष्णपाल गुर्जर के लिए एक बड़ी राजनीतिक चुनौती पेश कर रही है।
मार्केट कमेटी के चेयरमैनों की नियुक्तियों में हुए ये बदलाव इसी आपसी टकराव और शक्ति संतुलन की लड़ाई का सीधा परिणाम हैं।
निचोड़
मोदी सरकार देश की बुनियादी व्यवस्था मैं परिवर्तन का मंसूबाह रखती है। लेकिन राज्यों में नेताओं का डर्टी गेम उनके मंसूबों को कमजोर करता है और डीप स्टेट के इरादों को हवा देता है।
मुख्यमंत्री नायब सैनी इस समय ‘खट्टर प्रभाव’ से जूझ रहे हैं। ऐसे में पलवल की यह सियासी उछल-कूद उनकी छवि के लिए चेतावनीपूर्ण है।
विश्लेषक फिर से यह सवाल पूछ रहे हैं कि जन सेवकों के पद गुटों के प्रभाव से निश्चित होंगे या फिर प्राथमिकता के आधार पर? राजनीतिक शुचिता का क्या होगा?
क्या बीजेपी का प्रांतीय और केंद्रीय नेतृत्व ‘पलवल की इस रस्साकशी’ पर अपनी पीठ थपथपा सकता है?
गुर्जर नाम के ‘हावड़ा ब्रिज’ में गोयल, नागर और गौतम नाम के पिलर साथ छोड़ रहे हैं। किसी भी पुल के लिए यह खतरनाक है। यह गुर्जर के लिए आत्म मंथन का समय है कि जब बच्चों की शादी हो जाती है, तो उनकी ‘निजता’ अलग जाती है, उन्हें ‘अलग कोठड़ा’ चाहिए होता है, उनके भी परिवार हो जाते हैं और उनके परिवारों में भी बापू-बापू कहने वाले आ जाते हैं। दूसरी और गोयल, नागर और गौतम को यह सोचना होगा कि हसब-नसब और सिजरा कोई चीज होती है।
इनकी तो ये जानें, लेकिन इस चौसर पर भाजपा की कुल हार तय हो जाएगी।
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